Archives 2018

Filing Process of Annual Return (GSTR-9, 9A & 9C)

 

2. Annual_Return_FilingProcess_24102018_1-download

सालाना रिटर्न जीएसटीआर-9 की कुछ जरूरी जानकारी

वस्तु एवं सेवा कर में वित्तीय साल 2017-18 की खरीद बिक्री, इनपुट टैक्स क्रेडिट का ब्योरा सालाना रिटर्न जीएसटी आर-9 में दे सकते हैं। इस रिटर्न में संशोधन की सुविधा है ताकि जीएसटी के अन्य रिटर्न में कोई गलती हो तो सुधार किया जा सके।
रिटर्न में भरने से छूटी खरीद बिक्री आईटीसी का सालाना रिटर्न में दे ब्योरा
राज्य कर अफसरों के मुताबिक जीएसटी में खरीद के लिए 1, 2 ए और बिक्री के लिए 3 बी रिटर्न वगैरह होते हैं। जीएसटी आर-9 में साल भर की खरीद, बिक्री, इनपुट टैक्स क्रेडिट का विवरण इन रिटर्न से आ जाएगा। वहीं इस रिटर्न में किसी महीने की छूटी हुई खरीद, बिक्री, गलती से लिया गया इनपुट टैक्स क्रेडिट, मानवीय भूल के चलते गलती से हुई प्रविष्टि का भी संशोधन कर सकते हैं। इस रिटर्न में अप्रैल 2017 से मार्च 2018 तक संपूर्ण विवरण देना होगा। 31 दिसंबर तक यह रिटर्न जमा करना है। इस रिटर्न को ऑफलाइन तक फॉर्मेट आ गया है लेकिन पोर्टल पर ऑनलाइन नहीं आया है।

तीन प्रकार का है सालाना रिटर्न
सालाना रिटर्न तीन किस्म का हैं। कारोबारी जीएसटी आर-9, कंपोजिशन (समाधान) कारोबारी जीएसटी आर-9ए, ई-कॉमर्स ऑपरेटर आदि जीएसटी आर-9 बी देंगे। वहीं दो करोड़ से ज्यादा का टर्नओवर वाले कारोबारी जीएसटी आर-9 सी में ऑडिट रिपोर्ट जमा कर सकते हैं।

छह हिस्सों और 18 टेबल में है रिटर्न
सालाना रिटर्न जीएसटी आर-9 छह हिस्सों और 18 टेबल में बंटा है। इनमें खरीद, बिक्री, आईटीसी आदि का संपूर्ण विवरण है।

30 सितंबर तक सभी रिटर्न जमा होने पर ही कर सकेंगे संशोधन
जीएसटी आर-9 में संशोधन की सुविधा उन्हीं कारोबारियों को मिलेगी, जिनके सभी रिटर्न 30 सितंबर 2018 तक जमा है। यानी जिस कारोबारी ने जीएसटी आर 1, 2, 3, 4 आदि 30 सितंबर तक जमा किए हैं, वहीं गलती सुधार सकता है। अगर किसी ने एक भी रिटर्न जमा नहीं किए हैं तो वह कारोबारी सालाना रिटर्न जमा करेगा लेकिन उसे संशोधन की सुविधा नहीं मिलेगी।

जीएसटी आर-9 का फॉर्मेट आ गया है। किसी भी कारोबारी की किसी भी महीने की खरीद, बिक्री आदि छूट गई या गलती हो तो इसमें संशोधन कर सकता है।
– विनय प्रकाश ओझा, सहायक आयुक्त, राज्य कर

*GSTR-9*

All the registered taxable persons under GST as regular taxpayers filing GSTR 1, GSTR 2, GSTR 3 are required to file GSTR-9.
However, the following persons are not required to file GSTR 9:
A. Casual Taxable Person
B.Input service distributors
3.Non-resident taxable persons
4. Persons paying TDS under section 51 of GST Act.

*Due date of GSTR-9*
GSTR-9 shall be filed on or before 31st December of the subsequent financial year.For instance, for FY 2017-18, the due date for filing GSTR 9 is 31st December 2018.

*Penalty for the late filing of GSTR-9 return*
Late fees for not filing the GSTR 9 within the due date is Rs. 100 per day per act up to a maximum of an amount calculated at a quarter percent of the taxpayer turnover in the state or union territory. Thus it is Rs 100 under CGST & 100 under SGST, total penalty is Rs 200 per day of default. There is no late fee on IGST.

*Online Filing Process Of Annual Return GSTR-9*
? Based on GSTR-1 and GSTR-3B filed during the year, facility to download system computed GSTR-9 as PDF format will be available.

? Based on GSTR-1 filed, consolidated summary of GSTR-1 will be made available as PDF download.

? Based on GSTR-3B filed, consolidated summary of GSTR-3B will be made available as PDF download.

? In each table of GSTR-9, values will be auto-populated to the extent possible based on GSTR-3B and GSTR-1 of the year. All the values will be editable with some exceptions (table 6A, 8A and tax payment entries in table 9).

? NIL return can be filed through single click.
Offline

? Offline tool to be downloaded from the portal.

? Auto-populated GSTR-9 (System computed json) to be downloaded from the portal before filling up values.

? Table 6A and table 8A will be non-editable.Other values will be editable barring tax payment entries in table 9.

? After filling up the values, json file to be generated and saved.
After logging on the portal, the json file to be uploaded.

? File will be processed and error if any will be shown.

? Error file to be downloaded from the portal and opened in the Excel tool.

? After making corrections, file will again be uploaded on the portal.

? Corrections can be made online also except table 17 & 18 if the number of records exceeds 500 in each table.

? After filing, return can be downloaded as PDF and/or Excel.

? Revision facility is not there, therefore, return should be filed after reconciling the information provided in the return and in the books.

*Payment while filing GSTR-9*:
i. Except late fee, if any, no payment is to be made with annual return.
ii. Payment can be made on voluntary basis through GST DRC-03, if required.

Madhya Pradesh Dist. Bhopal Vat, Entry Tax, CST Self Assessment List FY 2013-14

Madhya Pradesh Dist. Bhopal Vat, Entry Tax, CST Self Assessment List FY 2013-14

summry list 2013-14 – download

Madhya Pradesh Vat, Entry Tax, CST Self Assessment List FY 2014-15

Madhya Pradesh Vat, Entry Tax, CST Self Assessment List FY 2014-15

Self Assessed list 14-15 – download

Madhya Pradesh Dist. Bhopal Vat, Entry Tax, CST Self Assessment List FY 2015-16

Madhya Pradesh Dist. Bhopal Vat, Entry Tax, CST Self Assessment List FY 2015-16

summry list 2015-16 – download

Madhya Pradesh Dist. Bhopal Vat, Entry Tax, CST Self Assessment List FY 2016-17

Madhya Pradesh Dist. Bhopal Vat, Entry Tax, CST Self Assessment List FY 2016-17

summry list 2016-17 – download

अरुण जेटली जी का जीएसटी का दंड विधान

जीएसटी पेनल्टी ,लेट फीस और लास्ट डेट पर पोर्टल का काम न करना
ये अरुण जेटली जी और माननीय प्रधानमंत्री जी का दंड विधान है

कहानी जीएसटी ऑडिट की

…….कहानी जीएसटी ऑडिट की……

जीएसटी आने के पहले जब सर्विस टैक्स और वैट कानून था एक या दो राज्यों को छोड़कर वेट के कानूनमें किसी प्रोफेशनल के द्वारा ऑडिट नहीं होता था और सर्विस टैक्स में पूरे देश में,भी नहीं होता था.

प्रोफेशनल के द्वारा कंपलसरी ऑडिट कर कॉन्सेप्ट जीएसटी कानून में लाया गया. जैसा की इनकम टैक्स कानून में भी है. जीएसटी कानून के अनुसार धारा 65 में विभाग के अधिकारियों द्वारा और धारा 66 में चार्टर्ड अकाउंटेंट एवं कॉस्ट अकाउंटेंट के द्वारा विभाग के द्वारा नामित किए जाने पर किया जाएगा.
इसके अलावा धारा 35 की उप धारा 5 में यह प्रावधान है कि चार्टर्ड अकाउंटेंट अथवा कॉस्ट अकाउंटेंट से कंपलसरी ऑडिट करवाना पड़ेगा एक पर्टिकुलर सीमा से अधिक के टर्नओवर वालों को.

……जीएसटी कानून में ऑडिट …..

जीएसटी कानून की धारा दो कि उप धारा 13 मैं ऑडिट शब्द को परिभाषित किया गया है. यहां बहुत स्पष्ट किया गया है कि ऑडिट का मतलब है कि
रिकॉर्ड रिटर्न और अन्य दस्तावेज (जोकि रजिस्टर्ड पर्सन ने मेंटेन अथवा फर्निश किए है)
का ऐसा एग्जामिनेशन जो यह सत्यापित करें कि जो टर्नओवर दिखाया गया है ,
जो टैक्स का पेमेंट किया गया है,
जो रिफंड क्लेम किया गया है, और जो इनपुट टैक्स क्रेडिट ली गई है,
अथवा कानून के अन्य जो भी प्रावधान है उनका जो पालन किया गया है वह सही सही है.

ऑडिटर को यह कंफर्म करना होगा रजिस्टर्ड पर्सन ने गुड्स अथवा सर्विसेस की सप्लाई की सही सही लायबिलिटी निर्धारित की है और अथवा सर्विसेज का सही क्लासिफिकेशन किया है, टाइम ऑफ सप्लाई सही डिटरमाइंड किया है, प्लेस ऑफ सप्लाई भी सही सही निर्धारित किया है और गुड्स ओर सर्विसेज जिनका सप्लाई किया है उसका वैल्यूएशन भी सही सहीकिया है.
इसके अतिरिक्त, जो इनपुट टैक्स क्रेडिट ली है वह सही ली है एवं सही यूटिलाइज भी की है. इसके साथी जो एग्जिमशन अथवा रिफंड क्लेम किए हैं वह भी सही हैं.
कानून में रजिस्ट्रेशन उसके अमेंडमेंट रिकॉर्ड के मेंटेनेंस टीडीएस टीसीएस टैक्स पेमेंट इन वॉशिंग से संबंधित जितने भी प्रोसीजर है उनका सही-सही पालन भी किया है.

इस प्रकार से देखा जाए तो ऑडिट ऑडिट ना रहते हुए एक प्रकार का कंपलीट एसेसमेंट ही हो गया वह भी इन्वेस्टिगेशन करते हुए.

……सर्टिफिकेशन या रिपोर्टिंग…..

एक प्रश्न और उठता है कि जीएसटी ऑडिट सर्टिफिकेशन है अथवा रिपोर्टिंग है.
सीए लोगों के संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंटट्स ऑफ इंडिया ने एक गाइडेंस नोट जारी किया है ऑडिट रिपोर्ट एवं सर्टिफिकेट के संबंध में .

इसमें या समझाया गया कि सर्टिफिकेट और रिपोर्ट दोनों अलग-अलग चीजें हैं. एक प्रकार का लिखित पुष्टिकरण है उसमें फैक्ट बताए गए हैं वह एक्यूरेट हैं और वे सिर्फ कोई अनुमान या ओपिनियन मात्र नहीं है.

रिपोर्ट के संबंध में यह परिभाषा दी गई है की यह एक प्रकार का औपचारिक विवरण पत्र है जो कि किसी इंक्वायरी अथवा एग्जामिनेशन के बाद में तैयार किया जाता है और जिस में ऑडिटर का अपना ओपिनियन भी है विवरणपत्र के बारे में.

…………….ऑडिट फॉरमैट………….
अब जो जीएसटी ऑडिट से संबंधित फॉर्म सरकार ने 13 सप्टेंबर को जारी किए है उसके अंतर्गत रिपोर्ट फॉरमैट फॉर्म 9c में बताया गया है.
जिसको देखने पर यह स्पष्ट होता है कि यह एक प्रकार का जारी करने वाला विवरण पत्र नहीं है जिसमें कोई ऑडिटर ओपिनियन हो बल्कि यह फाइनेंसियल स्टेटमेंट के साथ में जीएसटी के एनुअल रिटर्न के रिकॉन्सिलिएशन की करेक्टनेस को सर्टिफाई करता है .

इसीलिए यह स्पष्ट हो जाता है कि जीएसटी का उपरोक्त फॉर्म सर्टिफिकेट ज्यादा है ऑडिट रिपोर्ट कम.
अतः ऑडिटर की रिस्क बहुत बढ़ जाती है.

अब जो 9c नंबर का फॉर्म जारी किया गया है वह ऑडिट की परिभाषा और ऑडिट की धारा 35 के प्रावधानों से बहुत ज्यादा मेल खाता प्रतीत नहीं होता है.

क्योंकि जीएसटी कानून के अंतर्गत से कोई ऑडिट तो हुआ नहीं. साल भर में भरे गए रिटर्न की डिटेल समरी के रूप में एनुअल रिटर्न बना एवं उसका का ऑडिटेड फाइनेंशियल स्टेटमेंट से रीकैंसिलेशन हो गया.

हालांकि इससे ज्यादा तकनीकी जद्दोजहद पहले साल में चाहिए भी नहीं.

ऑडिट की जो डेफिनिशन है और उसमें जो काम ऑडिटर से चाहे गए हैं उसके हिसाब से तो एक ऑडिटर साल में 5 ऑडिट भी नहीं कर सकता. कानून बनाने वाले ऑडिटर पर इतना बोझ क्यों डालना चाहते हैं यह समझ से परे है.

…. दो करोड़ की टर्नओवर लिमिट ….

ऑडिट कराने की अनिवार्यता टर्नओवर लिमिट 2 करोड रुपए रखी गई है. जीएसटी में शुरू से टर्नओवर को एग्रीगेट टर्नओवर ही बोला गया है. अर्थात पैन नंबर के आधार पर ऑल इंडिया बेसिस पर टर्नओवर.
जबकि रजिस्ट्रेशन स्टेट वाइज लेने के लिए कानून बनाए गए हैं. अब यदि किसी के 1 से अधिक राज्यों में रजिस्ट्रेशन है और उन सभी का टोटल टर्नओवर 2 करोड़ है तो फिर सभी राज्यों के लिए लिए गए रजिस्ट्रेशन का अलग से ऑडिट करवाना ही पड़ेगा. है ना विडंबना वह भी बहुत जबरदस्त. हद है.

दूसरी खास बात यह है कि धारा 35 जो कि ऑडिट के संबंध में बात करती है वह टर्नओवर की बात करती है जबकि रूल 80 जो इससे संबंधित है वह एग्रीगेट टर्नओवर की बात करता है जिससे कन्फ्यूजन बढ़ जाता है.
फिर भी चुकी रूल धारा से बड़ा नहीं हो सकता अतः यह माना जाएगा की टैक्सेबल टर्नओवर को ही दो करोड़ की गणना में शामिल किया जाएगा.

चुकी टर्नओवर वैल्यू से निकलता है जोकि जीएसटीकानून की धारा 15 में बताई गई है . हेड ऑफिस से ब्रांच को ट्रांसफर टर्नओवर में नहीं गिने जाते भले ही उनमें जीएसटी कानून के तहत जीएसटी लगता है सप्लाई मान मानकर.

इसी प्रकार इनवार्ड सप्लाई के मामले में रिवर्स चार्ज के अंतर्गत भरा गया जीएसटी से रिलेटेड वाला अमाउंट टर्नओवर में कैलकुलेट नहीं किया जाता.

पहले जो बैलेंस शीट बनाई जाती है या जो फाइनेंसियल स्टेटमेंट तैयार किए जाते हैं .वह विभिन्न तरह के कानूनों के अंतर्गत बनाई जाती है एवं उनके अनुसार तथा संबंधित जनरली एक्सेप्टेड अकाउंटिंग प्रिंसिपल एवं गाइडलाइंस के आधार पर ही एवं अकाउंटिंग स्टैंडर्ड (इंड ए एस)आदि के आधार पर ही कब इनकम बुक करना है, कितनी इनकम करना है, किसको इनकम मानना है , किसको इनकम नहीं मानना है .ऐसे बहुत से कानूनों के अंतर्गत बनाई जाती है तो यह भी जरूरी नहीं कि बुक्स में अकाउंटिंग के हिसाब से टर्नओवर हो किंतु वह जीएसटी कानून के हिसाब से भी टर्नओवर 2 करोड़ के ऊपर माना जाए.

एक रजिस्टर्ड टैक्सेबल पर्सन के कई राज्यों में रजिस्ट्रेशन है और उसका पैन नंबर एक ही है तो बैलेंस शीट तो एक बन जाती है लेकिन छोटी-छोटी हर राज्य की बैलेंस शीट तो कोई अलग बनाता नहीं है ,ना उसकी कोई अकाउंटिंग होती है तो ऐसी स्थिति में ऑडिटेड फाइनेंसियल स्टेटमेंट मैं उस राज्य विशेष का क्या टर्नओवर है और उसका कैसे रिकॉन्सिलिएशन होगा. यह बड़ी सोचने वाली और बड़ी दिक्कत वाली बात हो सकती है.

………क्या है एनुअल रिटर्न….
धारा 44 जो की एनुअल रिटर्न फाइल करने की बात करती है वह यह बात भी करती है कि एनुअल रिटर्न के साथ साथ ऑडिटेड एनुअल अकाउंट्स और उनका एनुअल रिटर्न के साथ-साथ रिकॉन्सिलिएशन स्टेटमेंट अथवा कॉस्ट अकाउंटेंट द्वारा फॉर्म 9 सी के अंतर्गत सर्टिफाई किया हुआ भी फाइल करना होगा.
इस प्रकार से जीएसटी ऑडिट रिपोर्ट की लेने की अंतिम तिथि 31 दिसंबर ही मानी जाएगी.

….जीएसटी ऑडिट कौन कर सकते हैं…

एक बहुत ही दिलचस्प तथ्य यह है कि करीब एक 1.10 करोड़ से ऊपर रजिस्टर्ड पर्सन है पूरे देश में. जिस में 2 करोड़ से अधिक टर्नओवर करने वाले करीब 25% अनुमानित है. जो ऑडिट करने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट अथवा कॉस्ट अकाउंटेंट है उनकी संख्या है सिर्फ 150000. इस प्रकार कम से कम एक ऑडिटर को 20 ऑडिट करने ही पड़ेंगे. असेसमेंट के रूप में दो महीने के अंदर .

जैसे कि ऊपर पहले कि बताया गया कि यह सिर्फ चार्टर्ड अकाउंटेंट अथवा कॉस्ट अकाउंटेंट जो की प्रैक्टिस में है वही कर सकते हैं.

अब जो पहले से ही बैलेंस शीट का ऑडिट कर रहे हैं क्या वे चार्टर्ड अकाउंटेंट्स क्या जीएसटी का ऑडिट भी कर सकते हैं ?

इस संबंध में कोई पाबंदी स्पष्ट रूप से नहीं है. हां इंटरनल ऑडिटर जीएसटी ऑडिट नहीं कर सकते .यह सीए की केंद्रीय परिषद ने अपनी मीटिंग में स्पष्ट कर दिया है. संयुक्त ऑडिटर को अपॉइंट करने की परंपरा चली आ रही है वह जीएसटी कानून के अंतर्गत भी की जा सकती है .
क्योंकि इसमें कोई स्पष्ट रूप से पाबंदी नहीं है. अगर ऐसा होता है तो दो अलग ऑडिटर के दो अलग ओपिनियन देखने का नजारा दिलचस्प होगा.

अब यदि एक व्यक्ति के एक से अधिक रजिस्ट्रेशन है तो हर रजिस्ट्रेशन के लिए अलग ऑडिटर नियुक्त करना है कि एक ही ऑडिटर सभी ऑडिट कर सकता है इस बारे में भी कानून में कोई स्पष्ट एवं अलग से प्रावधान नहीं है.

यह सब ऑडिट करवाने वाले की इच्छा पर निर्भर करता है.

कोई ऐसी संस्था जिससे ऑडिटर ने ₹10000 सेअधिक का लोन लिया है तो वह संस्थान का ऑडिट नहीं कर सकता या उसका कोई सा महत्वपूर्ण हित उसमें निहित है तो भी नहीं कर सकता.

कोई सी ए पार्ट टाइम प्रैक्टिस में है तो नहीं कर सकता. अगर वह उस संस्थान की रूटीन अकाउंटिंग का और रिकॉर्ड मेंटेनेंस का काम देखता है तो भी वह नहीं कर सकता.
किसी सीए फर्म का सीए एम्पलाई ऑडिट नहीं कर सकता.
यानी सिर्फ प्रोपराइटर अथवा पार्टनर सीए हीऑडिट कर सकते हैं. ऑडिट कराने की जिम्मेदारी भी प्रमुख रूप से रजिस्टर्ड टैक्सेबल पर्सन की है ऑडिटर कि नहीं है.

….ऑडिट नहीं करवाएंगे तो क्या होगा….

एनुअल रिटर्न ऑडिट रिपोर्ट के साथ नहीं फाइल करने पर ₹100 प्रतिदिन अथवा राज्य विशेष के टर्नओवर का 0.25% के बराबर पेनल्टी लगेगी यह तो बात होगी सीजीएसटी में और एसजीएसटी में ₹100 दिन की पेनल्टी है.

एनुअल रिटर्न को लेट फाइल करने पर शुल्क टर्नओवर के आधार पर कंप्यूट करना है यह भी एक त्रासदी है.
हालांकि जीएसटी कानून के तहत अकाउंट ऑडिट नहीं करवाने का या फॉर्म नहीं फाइल करने का कोई स्पेशल पेनल प्रोविजन नहीं है.

सेक्शन 125 में जो ₹25000 की रिहायशी पैनल्टी का प्रावधान है वह लागू होगा और इतनी ही पेनल्टी एसजीएसटी एक्ट के तहत भी लगेगी.
इन दोनों के बराबर जो राशि होगी उतनी आईजीएसटी एक्ट कानून के तहत भी लग जाएगी.

…………कब करना है फाइल…….
उसे ऑडिटेड एनुअल अकाउंट का एनुअल रिटर्न में के साथ रिकॉन्सिलिएशन स्टेटमेंट जी धारा 44 में प्रस्तावित है.
और अन्य डॉक्यूमेंट के अंतर्गत फॉर्म 9 सी है.
जहां तक एनुअल रिटर्न की बात है इसे 31 दिसंबर 2018 तक फाइल करना है.फॉर्म जीएसटीआर 9 के अंदर. देखे नोटिफिकेशन नंबर 39 / 2018 दिनांक 4 सितंबर 2018..

इनपुट सर्विस डिसटीब्यूटर, टीडीएस करने वाले, टीसीएस करने वाले, कैजुअल टैक्सेबल पर्सन, नॉनरेजिडेंट टैक्सेबल पर्सन को एनुअल रिटर्न फाइल नहीं करना है.

composition levy shall not furnish the data in serial number 4A of Table 4 of FORM GSTR-4.

Informed that doubts regarding the manner of filing the Quarterly Return by Composition Dealers in FORM GSTR-4 in the absence of auto-population of details of inward supplies(other than supplies attracting Reverse Charge)received from registered suppliers exist amongst taxpayers.
In this regard, it is clarified that the taxpayers who have opted to pay tax under the composition levy shall not furnish the data in serial number 4A of Table 4 of FORM GSTR-4. The required changes in the CGST Rules, 2017 would be notified shortly.

GSTR-4 के कॉलम 4ए को ना भरने 10000/- का जुर्माना भरना होगा

सीजीएसटी नोटिफ़िकेशन 26/2018 तिथि 13.06.2018 के द्वारा

GSTR-4 के कॉलम 4ए को 30.06.2018 तक ना भरने की छूट दी गई है।

अर्थात 01.07.2018 से उसको भरना ज़रूरी है।

अगर इस अवधि में किसी तरह की कोई खरीदी की जाती है और
अग़र कोई डीलर उसको बिना भरे GSTR-4 दाख़िल करता है

औऱ छूट की अवधि नहीं बढ़ाई जाती है तो उसे

सीजीएसटी के सेक्शन 122 / 125 के अंतर्गत कम से कम ₹ 10000/- का जुर्माना भरना होगा

Notification click and download