व्यापारी GST ई-वे बिल से बचकर इस तरह कर रहे हैं टैक्स चोरी
व्यापारी GST ई-वे बिल से बचकर इस
तरह कर रहे हैं टैक्स चोरी
रजिस्ट्रेशन नहीं कराकर टैक्स से बचने के लिए व्यापारी कई तरह के तरीके अपना रहे हैं. हमारे रिपोटर्स ने यूपी, छत्तीसगढ़ और झारखंड समेत कई राज्यों के ट्रेडर्स से इस संबंध में बातचीत की.
Updated on: March 29, 2018, 3:03 PM IST
news18
एक अप्रैल से इलेक्ट्रॉनिक वे बिल (ई-वे बिल) लागू होने जा रहा है, लेकिन एक करोड़ से अधिक के टैक्स बेस में से अभी तक सिर्फ 11 लाख ट्रेडर्स ने ही जीएसटीएन पर रजिस्ट्रेशन कराया है. ऐसे में कैश में ट्रेड पर लगाम लगाकर टैक्स कलेक्शन बढ़ाने के सरकार के सपनों को जोरदार झटका लगा है. रजिस्ट्रेशन नहीं कराकर टैक्स से बचने के लिए व्यापारी कई तरह के तरीके अपना रहे हैं. हमारे रिपोटर्स ने यूपी, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड समेत कई राज्यों के ट्रेडर्स के साथ ही कुछ सीए से भी इस संबंध में बात की. ट्रेडर्स और सीए ने जो खुलासा किया है, वे चौंकाने वाले हैं-
जीएसटी से बचने के तरीके पर लखनऊ के एक व्यापारी ने बताया कि रजिस्ट्रेशन कराने के बाद बचने का कोई रास्ता नहीं है. अगर आप ग्राहक को पक्का बिल नहीं भी देते तो भी बच नहीं सकते, क्योंकि आप जहां से माल ला रहे हैं, वहां तो आपको जीएसटी देना ही है. वह आपको पक्का बिल देगा. अगर फिर भी आपने किसी तरह की हेराफेरी करके टैकस बचा लिया तो ऑडिट में पकड़े जाएंगे. लिहाजा कोई व्यापारी ये रिस्क नहीं लेगा. यही वजह है कि अभी तक बाजार उठ नहीं सका है. अभी साल भर और लगेगा सब कुछ सामान्य होने में.
उत्तर प्रदेश के एक दूसरे व्यापारी ने बताया कि जब जीएसटी आया तो उसमें कहा गया था कि 20 लाख के टर्न ओवर वालों के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है. लेकिन देशहित में मैंने करवा लिया. लेकिन उसके बाद मुझे असल दिक्कत का पता चला. मेरा फुटकर का काम है. हर एक रिकॉर्ड मेंटेन करने में समस्या होने लगी. इसके लिए एक आदमी रखना पड़ा. इसका असर बिज़नेस पर होने लगा. तीन महीने बाद मैंने जीएसटी रजिस्ट्रेशन रद्द करवा दिया. अब मैं सुकून से हूं.
छत्तीसगढ़ में भी जीएसटी लागू होने के बाद से बिजनेस कम्युनिटी में डर का माहौल है. कुछ व्यापारियों और उद्योग जगत से जुड़े लोगों ने बताया कि वे डर-डर के बिजनेस कर रहे हैं. इस समय वे ‘जितना प्राप्त उतना ही पर्याप्त’ की नीति पर काम कर रहे हैं. कोई भी नया काम या उत्पादन बढ़ाने का उनका विचार नहीं है. इसके प्रमुख दो कारण है- एक तो जीएसटी में ऑनलाइन प्रक्रिया होने के कारण टैक्स से बचने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है और दूसरा मार्केट में मंदी का माहौल है.
हालांकि झारखंड के कुछ व्यापारियों ने जीएसटी से बचने के उपायों पर नाम नहीं बताने की शर्त पर खुलकर बातचीत की. उनके अनुसार, वे बिना बिल का माल बेचते हैं. ऐसा खासकर वैसे छोटे कारोबारी करते हैं, जिनका सालाना टर्न ओवर डेढ़ करोड़ तक है. ऐसे कारोबारी अपने कारोबार को आगे बढ़ाने की भी इच्छा नहीं रखते हैं. बात करने वालों में अधिकांश ने बताया कि वे कम्प्यूटर और कानूनी पेंचिदगियों से बचना चाहते हैं. उनके लिए अच्छी बात यह है कि ग्राहक भी ऐसे कारोबारी से बिल नहीं मांगते. हालांकि राज्य के बड़े कारोबारी जीएसटी से नहीं भाग रहे हैं.
नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर उत्तराखंड के एक चार्टर्ड अकाउंटेंट ने न्यूज़ 18 को बताया कि यह पुरानी बोतल में नई शराब की तरह है. जीएसटी चोरी या कर वंचना के तरीके वही हैं, जो पहले सेल्स, सर्विस, उत्पाद कर आदि से बचने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे. उन्होंने बताया कि जीएसटी बचाने के लिए जो तरीके इस्तेमाल किए जा रहे हैं, वे मुख्य रूप से ये है-
कैश में डील करना और बिल न देना- इसमें सिर्फ़ वही लोग टैक्स ले रहे हैं, जो बड़ी कंपनियों से सामान ख़रीदकर बेच रहे हैं, क्योंकि उन्हें जीएसटी नंबर के बिना सामान मिलता ही नहीं है. स्थानीय उत्पादों को बेचने वाले आसानी से कैश में डील कर रहे हैं.
सर्विस देने वालों को छूट – उत्तराखंड में 10 लाख तक के टर्नओवर को जीएसटी से छूट है. निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर, वकील, चार्टर्ट अकाउंटेंट जैसे लोग मुख्यतः कैश में डील करते हैं और अक्सर उनके खाते सुविधानुसार इस सीमा से नीचे ही रखे जाते हैं. एक अन्य चार्टर्ड अकाउंटेंट ने न्यूज़ 18 को बताया जैसे ही ट्रांज़ैक्शन्स 10 लाख रुपये टर्नओवर की सीमा के करीब पहुंची, उन्होंने एक दूसरी फ़र्म बना ली और ज़रूरत पड़ी तो वह तीसरी भी बना लेंगे.
जबकि सरकार यह मानकर चल रही है कि कैश में होने वाले ट्रेड पर लगाम लगने से उसके टैक्स बेस में जोरदार इजाफा होगा. बचे हुए तीन दिन में अनुमानित रूप से बाकी 90 लाख टैक्सपेयर्स रजिस्ट्रेशन करा पाएंगे, इसकी उम्मीद अब कम ही लग रही है.
क्या होगा अब: जीएसटी का आईटी आधार ‘जीएसटीएन’ नेटवर्क के पांचवें फाउंडेशन पर बोलते हुए फाइनेंस सेक्रेटरी हसमुख अधिया ने एक तरह से स्वीकार कर लिया कि अब सभी टैक्सपेयर्स के रजिस्ट्रेशन की उम्मीद कम ही है. अधिया ने कहा, अब उन्हें नहीं लगता कि बाकी ट्रेडर्स, डीलर्स और ट्रांसपोटर्स रजिस्ट्रेशन के लिए तैयार हैं. हालांकि उन्होंने सभी ट्रेडर्स से जल्द रजिस्ट्रेशन कराने की अपील के साथ ही यह कहकर उन्हें एक तरह की धमकी भी दे दी कि अब बचे हुए लोग यह नहीं कह पाएंगे कि उन्हें जानकारी नहीं थी.
जीएसटीएन पर होगा काफी दबाव: पिछले एक अप्रैल को इसकी लॉन्चिंग फेल होने के बाद नेशनल इन्फॉमेटिक्स सेंटर (एनआईसी) ने इसे मजबूत किया है. सरकार का दावा है कि अब यह 75 लाख इंटर-स्टेट ई-वे बिल डेली हैंडल कर सकता है. इसके बावजूद जानकारों का मानना है कि अगर बाकी लोग रजिस्ट्रेशन के लिए आ जाएं तो जीएसटीएन पर जबर्दस्त दबाव होगा. इससे पहले एक फरवरी को वह बुरी तरह क्रैश कर चुका है.
जीएसटीएन के सीईओ प्रकाश कुमार के अनुसार, बिजनेस टू बिजनेस ट्रांजैक्शंस में रेवेन्यू लीकेज को रोकने के लिए ई-वे बिल के क्रियान्वयन की तारीख पहले एक फरवरी रखी गई थी. लेकिन पहले ही दिन साइट क्रैश होने से जीएसटी काउंसिल ने इसकी तारीख बढ़ाकर एक अप्रैल कर दी थी.
अंतरराज्यीय यानी इंटर-स्टेट के लिए ई-वे बिल जहां एक अप्रैल से लागू होगा, वहीं इंट्रा-स्टेट यानी राज्य के अंदर कारोबार के लिए यह 15 अप्रैल से लागू होगा. सड़क, रेलवे, हवाई जहाज या फिर जहाज से अगर कोई 50 हजार रुपए से अधिक का सामान एक राज्य से दूसरे राज्य लेकर जाता है तो उसके लिए ई-वे बिल देना जरूरी है.
फिलहाल जीएसटी के तहत रजिस्टर्ड बिजनेस की संख्या 1 करोड़ 5 लाख है और लगभग लगभग 70 लाख रिटर्न फाइल कर रहे हैं.