Archives October 2018

अरुण जेटली जी का जीएसटी का दंड विधान

जीएसटी पेनल्टी ,लेट फीस और लास्ट डेट पर पोर्टल का काम न करना
ये अरुण जेटली जी और माननीय प्रधानमंत्री जी का दंड विधान है

कहानी जीएसटी ऑडिट की

…….कहानी जीएसटी ऑडिट की……

जीएसटी आने के पहले जब सर्विस टैक्स और वैट कानून था एक या दो राज्यों को छोड़कर वेट के कानूनमें किसी प्रोफेशनल के द्वारा ऑडिट नहीं होता था और सर्विस टैक्स में पूरे देश में,भी नहीं होता था.

प्रोफेशनल के द्वारा कंपलसरी ऑडिट कर कॉन्सेप्ट जीएसटी कानून में लाया गया. जैसा की इनकम टैक्स कानून में भी है. जीएसटी कानून के अनुसार धारा 65 में विभाग के अधिकारियों द्वारा और धारा 66 में चार्टर्ड अकाउंटेंट एवं कॉस्ट अकाउंटेंट के द्वारा विभाग के द्वारा नामित किए जाने पर किया जाएगा.
इसके अलावा धारा 35 की उप धारा 5 में यह प्रावधान है कि चार्टर्ड अकाउंटेंट अथवा कॉस्ट अकाउंटेंट से कंपलसरी ऑडिट करवाना पड़ेगा एक पर्टिकुलर सीमा से अधिक के टर्नओवर वालों को.

……जीएसटी कानून में ऑडिट …..

जीएसटी कानून की धारा दो कि उप धारा 13 मैं ऑडिट शब्द को परिभाषित किया गया है. यहां बहुत स्पष्ट किया गया है कि ऑडिट का मतलब है कि
रिकॉर्ड रिटर्न और अन्य दस्तावेज (जोकि रजिस्टर्ड पर्सन ने मेंटेन अथवा फर्निश किए है)
का ऐसा एग्जामिनेशन जो यह सत्यापित करें कि जो टर्नओवर दिखाया गया है ,
जो टैक्स का पेमेंट किया गया है,
जो रिफंड क्लेम किया गया है, और जो इनपुट टैक्स क्रेडिट ली गई है,
अथवा कानून के अन्य जो भी प्रावधान है उनका जो पालन किया गया है वह सही सही है.

ऑडिटर को यह कंफर्म करना होगा रजिस्टर्ड पर्सन ने गुड्स अथवा सर्विसेस की सप्लाई की सही सही लायबिलिटी निर्धारित की है और अथवा सर्विसेज का सही क्लासिफिकेशन किया है, टाइम ऑफ सप्लाई सही डिटरमाइंड किया है, प्लेस ऑफ सप्लाई भी सही सही निर्धारित किया है और गुड्स ओर सर्विसेज जिनका सप्लाई किया है उसका वैल्यूएशन भी सही सहीकिया है.
इसके अतिरिक्त, जो इनपुट टैक्स क्रेडिट ली है वह सही ली है एवं सही यूटिलाइज भी की है. इसके साथी जो एग्जिमशन अथवा रिफंड क्लेम किए हैं वह भी सही हैं.
कानून में रजिस्ट्रेशन उसके अमेंडमेंट रिकॉर्ड के मेंटेनेंस टीडीएस टीसीएस टैक्स पेमेंट इन वॉशिंग से संबंधित जितने भी प्रोसीजर है उनका सही-सही पालन भी किया है.

इस प्रकार से देखा जाए तो ऑडिट ऑडिट ना रहते हुए एक प्रकार का कंपलीट एसेसमेंट ही हो गया वह भी इन्वेस्टिगेशन करते हुए.

……सर्टिफिकेशन या रिपोर्टिंग…..

एक प्रश्न और उठता है कि जीएसटी ऑडिट सर्टिफिकेशन है अथवा रिपोर्टिंग है.
सीए लोगों के संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंटट्स ऑफ इंडिया ने एक गाइडेंस नोट जारी किया है ऑडिट रिपोर्ट एवं सर्टिफिकेट के संबंध में .

इसमें या समझाया गया कि सर्टिफिकेट और रिपोर्ट दोनों अलग-अलग चीजें हैं. एक प्रकार का लिखित पुष्टिकरण है उसमें फैक्ट बताए गए हैं वह एक्यूरेट हैं और वे सिर्फ कोई अनुमान या ओपिनियन मात्र नहीं है.

रिपोर्ट के संबंध में यह परिभाषा दी गई है की यह एक प्रकार का औपचारिक विवरण पत्र है जो कि किसी इंक्वायरी अथवा एग्जामिनेशन के बाद में तैयार किया जाता है और जिस में ऑडिटर का अपना ओपिनियन भी है विवरणपत्र के बारे में.

…………….ऑडिट फॉरमैट………….
अब जो जीएसटी ऑडिट से संबंधित फॉर्म सरकार ने 13 सप्टेंबर को जारी किए है उसके अंतर्गत रिपोर्ट फॉरमैट फॉर्म 9c में बताया गया है.
जिसको देखने पर यह स्पष्ट होता है कि यह एक प्रकार का जारी करने वाला विवरण पत्र नहीं है जिसमें कोई ऑडिटर ओपिनियन हो बल्कि यह फाइनेंसियल स्टेटमेंट के साथ में जीएसटी के एनुअल रिटर्न के रिकॉन्सिलिएशन की करेक्टनेस को सर्टिफाई करता है .

इसीलिए यह स्पष्ट हो जाता है कि जीएसटी का उपरोक्त फॉर्म सर्टिफिकेट ज्यादा है ऑडिट रिपोर्ट कम.
अतः ऑडिटर की रिस्क बहुत बढ़ जाती है.

अब जो 9c नंबर का फॉर्म जारी किया गया है वह ऑडिट की परिभाषा और ऑडिट की धारा 35 के प्रावधानों से बहुत ज्यादा मेल खाता प्रतीत नहीं होता है.

क्योंकि जीएसटी कानून के अंतर्गत से कोई ऑडिट तो हुआ नहीं. साल भर में भरे गए रिटर्न की डिटेल समरी के रूप में एनुअल रिटर्न बना एवं उसका का ऑडिटेड फाइनेंशियल स्टेटमेंट से रीकैंसिलेशन हो गया.

हालांकि इससे ज्यादा तकनीकी जद्दोजहद पहले साल में चाहिए भी नहीं.

ऑडिट की जो डेफिनिशन है और उसमें जो काम ऑडिटर से चाहे गए हैं उसके हिसाब से तो एक ऑडिटर साल में 5 ऑडिट भी नहीं कर सकता. कानून बनाने वाले ऑडिटर पर इतना बोझ क्यों डालना चाहते हैं यह समझ से परे है.

…. दो करोड़ की टर्नओवर लिमिट ….

ऑडिट कराने की अनिवार्यता टर्नओवर लिमिट 2 करोड रुपए रखी गई है. जीएसटी में शुरू से टर्नओवर को एग्रीगेट टर्नओवर ही बोला गया है. अर्थात पैन नंबर के आधार पर ऑल इंडिया बेसिस पर टर्नओवर.
जबकि रजिस्ट्रेशन स्टेट वाइज लेने के लिए कानून बनाए गए हैं. अब यदि किसी के 1 से अधिक राज्यों में रजिस्ट्रेशन है और उन सभी का टोटल टर्नओवर 2 करोड़ है तो फिर सभी राज्यों के लिए लिए गए रजिस्ट्रेशन का अलग से ऑडिट करवाना ही पड़ेगा. है ना विडंबना वह भी बहुत जबरदस्त. हद है.

दूसरी खास बात यह है कि धारा 35 जो कि ऑडिट के संबंध में बात करती है वह टर्नओवर की बात करती है जबकि रूल 80 जो इससे संबंधित है वह एग्रीगेट टर्नओवर की बात करता है जिससे कन्फ्यूजन बढ़ जाता है.
फिर भी चुकी रूल धारा से बड़ा नहीं हो सकता अतः यह माना जाएगा की टैक्सेबल टर्नओवर को ही दो करोड़ की गणना में शामिल किया जाएगा.

चुकी टर्नओवर वैल्यू से निकलता है जोकि जीएसटीकानून की धारा 15 में बताई गई है . हेड ऑफिस से ब्रांच को ट्रांसफर टर्नओवर में नहीं गिने जाते भले ही उनमें जीएसटी कानून के तहत जीएसटी लगता है सप्लाई मान मानकर.

इसी प्रकार इनवार्ड सप्लाई के मामले में रिवर्स चार्ज के अंतर्गत भरा गया जीएसटी से रिलेटेड वाला अमाउंट टर्नओवर में कैलकुलेट नहीं किया जाता.

पहले जो बैलेंस शीट बनाई जाती है या जो फाइनेंसियल स्टेटमेंट तैयार किए जाते हैं .वह विभिन्न तरह के कानूनों के अंतर्गत बनाई जाती है एवं उनके अनुसार तथा संबंधित जनरली एक्सेप्टेड अकाउंटिंग प्रिंसिपल एवं गाइडलाइंस के आधार पर ही एवं अकाउंटिंग स्टैंडर्ड (इंड ए एस)आदि के आधार पर ही कब इनकम बुक करना है, कितनी इनकम करना है, किसको इनकम मानना है , किसको इनकम नहीं मानना है .ऐसे बहुत से कानूनों के अंतर्गत बनाई जाती है तो यह भी जरूरी नहीं कि बुक्स में अकाउंटिंग के हिसाब से टर्नओवर हो किंतु वह जीएसटी कानून के हिसाब से भी टर्नओवर 2 करोड़ के ऊपर माना जाए.

एक रजिस्टर्ड टैक्सेबल पर्सन के कई राज्यों में रजिस्ट्रेशन है और उसका पैन नंबर एक ही है तो बैलेंस शीट तो एक बन जाती है लेकिन छोटी-छोटी हर राज्य की बैलेंस शीट तो कोई अलग बनाता नहीं है ,ना उसकी कोई अकाउंटिंग होती है तो ऐसी स्थिति में ऑडिटेड फाइनेंसियल स्टेटमेंट मैं उस राज्य विशेष का क्या टर्नओवर है और उसका कैसे रिकॉन्सिलिएशन होगा. यह बड़ी सोचने वाली और बड़ी दिक्कत वाली बात हो सकती है.

………क्या है एनुअल रिटर्न….
धारा 44 जो की एनुअल रिटर्न फाइल करने की बात करती है वह यह बात भी करती है कि एनुअल रिटर्न के साथ साथ ऑडिटेड एनुअल अकाउंट्स और उनका एनुअल रिटर्न के साथ-साथ रिकॉन्सिलिएशन स्टेटमेंट अथवा कॉस्ट अकाउंटेंट द्वारा फॉर्म 9 सी के अंतर्गत सर्टिफाई किया हुआ भी फाइल करना होगा.
इस प्रकार से जीएसटी ऑडिट रिपोर्ट की लेने की अंतिम तिथि 31 दिसंबर ही मानी जाएगी.

….जीएसटी ऑडिट कौन कर सकते हैं…

एक बहुत ही दिलचस्प तथ्य यह है कि करीब एक 1.10 करोड़ से ऊपर रजिस्टर्ड पर्सन है पूरे देश में. जिस में 2 करोड़ से अधिक टर्नओवर करने वाले करीब 25% अनुमानित है. जो ऑडिट करने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट अथवा कॉस्ट अकाउंटेंट है उनकी संख्या है सिर्फ 150000. इस प्रकार कम से कम एक ऑडिटर को 20 ऑडिट करने ही पड़ेंगे. असेसमेंट के रूप में दो महीने के अंदर .

जैसे कि ऊपर पहले कि बताया गया कि यह सिर्फ चार्टर्ड अकाउंटेंट अथवा कॉस्ट अकाउंटेंट जो की प्रैक्टिस में है वही कर सकते हैं.

अब जो पहले से ही बैलेंस शीट का ऑडिट कर रहे हैं क्या वे चार्टर्ड अकाउंटेंट्स क्या जीएसटी का ऑडिट भी कर सकते हैं ?

इस संबंध में कोई पाबंदी स्पष्ट रूप से नहीं है. हां इंटरनल ऑडिटर जीएसटी ऑडिट नहीं कर सकते .यह सीए की केंद्रीय परिषद ने अपनी मीटिंग में स्पष्ट कर दिया है. संयुक्त ऑडिटर को अपॉइंट करने की परंपरा चली आ रही है वह जीएसटी कानून के अंतर्गत भी की जा सकती है .
क्योंकि इसमें कोई स्पष्ट रूप से पाबंदी नहीं है. अगर ऐसा होता है तो दो अलग ऑडिटर के दो अलग ओपिनियन देखने का नजारा दिलचस्प होगा.

अब यदि एक व्यक्ति के एक से अधिक रजिस्ट्रेशन है तो हर रजिस्ट्रेशन के लिए अलग ऑडिटर नियुक्त करना है कि एक ही ऑडिटर सभी ऑडिट कर सकता है इस बारे में भी कानून में कोई स्पष्ट एवं अलग से प्रावधान नहीं है.

यह सब ऑडिट करवाने वाले की इच्छा पर निर्भर करता है.

कोई ऐसी संस्था जिससे ऑडिटर ने ₹10000 सेअधिक का लोन लिया है तो वह संस्थान का ऑडिट नहीं कर सकता या उसका कोई सा महत्वपूर्ण हित उसमें निहित है तो भी नहीं कर सकता.

कोई सी ए पार्ट टाइम प्रैक्टिस में है तो नहीं कर सकता. अगर वह उस संस्थान की रूटीन अकाउंटिंग का और रिकॉर्ड मेंटेनेंस का काम देखता है तो भी वह नहीं कर सकता.
किसी सीए फर्म का सीए एम्पलाई ऑडिट नहीं कर सकता.
यानी सिर्फ प्रोपराइटर अथवा पार्टनर सीए हीऑडिट कर सकते हैं. ऑडिट कराने की जिम्मेदारी भी प्रमुख रूप से रजिस्टर्ड टैक्सेबल पर्सन की है ऑडिटर कि नहीं है.

….ऑडिट नहीं करवाएंगे तो क्या होगा….

एनुअल रिटर्न ऑडिट रिपोर्ट के साथ नहीं फाइल करने पर ₹100 प्रतिदिन अथवा राज्य विशेष के टर्नओवर का 0.25% के बराबर पेनल्टी लगेगी यह तो बात होगी सीजीएसटी में और एसजीएसटी में ₹100 दिन की पेनल्टी है.

एनुअल रिटर्न को लेट फाइल करने पर शुल्क टर्नओवर के आधार पर कंप्यूट करना है यह भी एक त्रासदी है.
हालांकि जीएसटी कानून के तहत अकाउंट ऑडिट नहीं करवाने का या फॉर्म नहीं फाइल करने का कोई स्पेशल पेनल प्रोविजन नहीं है.

सेक्शन 125 में जो ₹25000 की रिहायशी पैनल्टी का प्रावधान है वह लागू होगा और इतनी ही पेनल्टी एसजीएसटी एक्ट के तहत भी लगेगी.
इन दोनों के बराबर जो राशि होगी उतनी आईजीएसटी एक्ट कानून के तहत भी लग जाएगी.

…………कब करना है फाइल…….
उसे ऑडिटेड एनुअल अकाउंट का एनुअल रिटर्न में के साथ रिकॉन्सिलिएशन स्टेटमेंट जी धारा 44 में प्रस्तावित है.
और अन्य डॉक्यूमेंट के अंतर्गत फॉर्म 9 सी है.
जहां तक एनुअल रिटर्न की बात है इसे 31 दिसंबर 2018 तक फाइल करना है.फॉर्म जीएसटीआर 9 के अंदर. देखे नोटिफिकेशन नंबर 39 / 2018 दिनांक 4 सितंबर 2018..

इनपुट सर्विस डिसटीब्यूटर, टीडीएस करने वाले, टीसीएस करने वाले, कैजुअल टैक्सेबल पर्सन, नॉनरेजिडेंट टैक्सेबल पर्सन को एनुअल रिटर्न फाइल नहीं करना है.

composition levy shall not furnish the data in serial number 4A of Table 4 of FORM GSTR-4.

Informed that doubts regarding the manner of filing the Quarterly Return by Composition Dealers in FORM GSTR-4 in the absence of auto-population of details of inward supplies(other than supplies attracting Reverse Charge)received from registered suppliers exist amongst taxpayers.
In this regard, it is clarified that the taxpayers who have opted to pay tax under the composition levy shall not furnish the data in serial number 4A of Table 4 of FORM GSTR-4. The required changes in the CGST Rules, 2017 would be notified shortly.

GSTR-4 के कॉलम 4ए को ना भरने 10000/- का जुर्माना भरना होगा

सीजीएसटी नोटिफ़िकेशन 26/2018 तिथि 13.06.2018 के द्वारा

GSTR-4 के कॉलम 4ए को 30.06.2018 तक ना भरने की छूट दी गई है।

अर्थात 01.07.2018 से उसको भरना ज़रूरी है।

अगर इस अवधि में किसी तरह की कोई खरीदी की जाती है और
अग़र कोई डीलर उसको बिना भरे GSTR-4 दाख़िल करता है

औऱ छूट की अवधि नहीं बढ़ाई जाती है तो उसे

सीजीएसटी के सेक्शन 122 / 125 के अंतर्गत कम से कम ₹ 10000/- का जुर्माना भरना होगा

Notification click and download

Gstr4 रिटर्न्स में खरीदी की सूची लेना का क्या औचित्य है?

कंपोजिशन वाले करदाता को तिमाही समाप्ति के 18 दिवस में रिटर्न्स जमा कराना है। शेष 2 दिवस में 3 माह की क्रय सूची अपलोड करना संभव नहीं है। सूची अपलोड करने के बाद भी करदाता को इनपुट टैक्स रीबेट नहीं मिलेगा फिर सूची अपलोड करवाने का कोई औचित्य ही नहीं है।
@arunjaitley

@PMOIndia

GSTR4 में खरीदी की जानकारी न मांगे

Gstr4 रिटर्न्स भरने की लास्ट डेट से 3 दिन पहले आपके पोर्टल पर रिटर्न्स फ़ाइल नही हो रहे है
और आप इसमे खरीदी की लिस्ट मांग रहे है कम्पोजीशन डीलर्स से वे जानकारी ली जा रही है जो रेगुलर डीलर्स से भी नही ली जा रही है इसका कारण क्या है
GSTR4 में खरीदी की जानकारी न मांगे.
@arunjaitley

GST System Project: User Manual: Registration as Tax Deductor

GST System Project: User Manual:
Registration as Tax Deductor

GST System Project: User Manual: Registration as Tax Deductor

CBDT further extends due dt for filing of IT Returns & audit reports from 15th Oct,2018 to 31st Oct

Income Tax India (@IncomeTaxIndia) Tweeted:
CBDT further extends due dt for filing of IT Returns & audit reports from 15th Oct,2018 to 31st Oct, 2018 for all assessees liable to file ITRs for AY 2018-19 by 30.09.2018,after considering representations from stakeholders. Liability to pay interest u/s234A of ITAct will remain.

GST में TDS के प्रावधानों के 10 सवालों का पोस्टमार्टम करें।

GST में TDS के प्रावधानों के 10 सवालों का पोस्टमार्टम

GST में TDS के प्रावधान सबके लिए नहीं हैं।

ये केवल कुछ लोगों पर एप्लीकेबल हैं। सरल आम लोगों के शब्दों में यह कह सकते हैं कि ये सरकारी या उसके जैसी संस्था पर ही लागू होगी।

Section 51 के अनुसार कुछ entity 2% GST TDS काट कर पेमेंट करेगी अगर टोटल basic contract amount 250000 से ज़्यादा है तो।

आओ GST में TDS के प्रावधानों के 10 सवालों का पोस्टमार्टम करें।

1. TDS किसको काटना है :
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(a) a department or establishment of the Central Government or State Government; or
(b) local authority; or
(c) Governmental agencies; or
(d) such persons or category of persons as may be notified by the Government on the recommendations of the Council

अभी तक निम्न persons को नोटिफाई किया गया है:

Persons notified vide Notification No. 33/2017 – Central Tax
(a) an authority or a board or any other body, –
(i) set up by an Act of Parliament or a State Legislature; or
(ii) established by any Government,
with fifty-one percent or more participation by way of equity or control, to carry out any function;
(b) society established by the Central Government or the State Government or a Local Authority under the Societies Registration Act, 1860 (21 of 1860);
(c) public sector undertakings

इसका मतलब ये है कि अगर आप उपरोक्त में से किसी में fall करते हो तो ही आपको TDS काटना है।

शब्दों में अगर आप उपरोक्त में से किसी को गुड्स या सर्विसेज की सप्लाई करते हो तो ही वह आपका TDS काटेगा, अन्यथा नहीं।

2. किस लिमिट से ऊपर TDS?:
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जब कॉन्ट्रैक्ट की total basic value 250000 से ज्यादा होगी, तभी TDS काटने की liability आएगी

3. किस Value पर TDS:
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Basic value (SGST/CGST/IGST से पहले) पर ही TDS कटेगा।

4. TDS किस रेट से कटेगा?
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लोकल सप्लाई के लिए SGST 1% औऱ CGST 1% तथा inter state सप्लाई पर 2%

5. TDS कब काटना है:
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बिल की पेमेंट के टाइम पर

6. TDS काट कर कब तक जमा करना है?:
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जिस महीने TDS काटा है, उस से अगले महीने की 10 तारीख तक।

अगर 10 तक जमा नहीं करवाया तो 18% p. a. के हिसाब से ब्याज देना पड़ेगा।

7. GST में TDS की Return:
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GST में TDS की monthly return अगले माह की 10 तारीख तक GSTR 7 form में भरनी होगी।

8. TDS certificate issue करने का दायित्व:
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TDS जमा करने के 5 दिनों के अंदर GSTR-7A के रूप में TDS certificate issue करने हैं। अगर नहीं किये तो 100 रुपये प्रति दिन (maximum 5000 रुपये की) की penalty लगेगी।

9. क्या इसका कोई अलग रजिस्ट्रेशन होगा?:
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हाँ बिल्कुल ऊपर लिखित persons को इसका अलग रजिस्ट्रेशन लेना होगा। इस रजिस्ट्रेशन के लिए इनकम टैक्स के TAN जरूरी होगा।

10. Supplier क्या करेगा अगर उसका TDS कटा?:
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TDS return फ़ाइल होने के बाद टैक्स का पैसा सप्लायर के Electronic cash ledger में रिफ्लेक्ट हो जाएगा और सप्लायर इसका इस्तेमाल अपनी अन्य GST पेमेंट को ऑफ सेट करने के लिए कर पायेगा।

उम्मीद है आपको अब TDS से संबंधित बेसिक प्रावधानों का ज्ञान हो गया होगा।

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